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देवता: इन्द्र: ऋषि: वत्सः काण्वः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः

यद॒ङ्ग त॑विषी॒यस॒ इन्द्र॑ प्र॒राज॑सि क्षि॒तीः । म॒हाँ अ॑पा॒र ओज॑सा ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yad aṅga taviṣīyasa indra prarājasi kṣitīḥ | mahām̐ apāra ojasā ||

पद पाठ

यत् । अ॒ङ्ग । त॒वि॒षी॒ऽयसे॑ । इन्द्र॑ । प्र॒ऽराज॑सि । क्षि॒तीः । म॒हान् । अ॒पा॒रः । ओज॑सा ॥ ८.६.२६

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:6» मन्त्र:26 | अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:14» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:26


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शिव शंकर शर्मा

इन्द्र का महत्त्व दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (अङ्ग+इन्द्र) हे इन्द्र ! (यत्) जिस कारण तू (ओजसा) स्वकीय परमैश्वर्य्य से (महान्) महान् है अर्थात् समस्त सम्मिलित पदार्थों से भी तू ही बहुत बड़ा है। अतः तू (अपारः) अपार है, तेरी अवधि को कोई नहीं जानता, तू अनन्त अनन्त है। इस हेतु तू ही (तवसीयसे) सब पदार्थों में बल स्थापित करता है और (क्षितीः) समस्त पृथिवी लोक आदिकों का शासन करता है ॥२६॥
भावार्थभाषाः - हे मेधाविगण ! ईश्वर की महिमा देखो। उसका न तो आदि न अन्त और मध्य है, वह सबसे महान् है। अतः सबका शासन करता और सबका राजा है, अतः उसी की सेवा करो ॥२६॥
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आर्यमुनि

अब परमात्मा की महिमा वर्णन करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (अङ्ग, इन्द्र) हे परमात्मन् ! (यत्) जो आप (तविषीयसे) सैन्य के समान आचरण करते हैं (क्षितीः, प्रराजसि) और मनुष्यों का शासन करते हैं, इससे (महान्) पूज्य आप (ओजसा) पराक्रम से (अपारः) अपार हैं ॥२६॥
भावार्थभाषाः - इन्द्र=हे सर्वैश्वर्य्यसम्पन्न परमेश्वर ! आप सेनापति के समान हमारी सब ओर से रक्षा करते और प्रजा के समान हम पर शासन करते हैं, इसलिये आपका महान् पराक्रम तथा अपार शक्ति है। सो हे प्रभो ! कृपा करो कि हम लोग आपके शासन में रहकर आपकी आज्ञा का पालन करते हुए उन्नत हों ॥२६॥
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शिव शंकर शर्मा

इन्द्रस्य महत्त्वं प्रदर्श्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - अङ्गेत्यभिमुखीकरणे। हे इन्द्र ! यत्=यतस्त्वम्। ओजसा=स्वकीयेन परमैश्वर्य्येण। महान् असि=समस्तेभ्यः पदार्थेभ्यो महत्तमोऽस्ति। अतस्त्वमपारोऽसि=तव पारो न विद्यते। तवावधिं न केऽपि जानन्ति। अतः। तवसीयसे=सर्वेषु पदार्थेषु त्वमेव बलं दधासि। तवसीति बलनाम। पुनः। सर्वाः। क्षितीः=पृथिव्यादिलोकान्। प्रराजसि=प्रकर्षेण शासि। ईदृशस्त्वमपि प्रसीदेति प्रार्थना ॥२६॥
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आर्यमुनि

अथ परमात्मनो महिमा वर्ण्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - (अङ्ग, इन्द्र) हे इन्द्र ! (यत्) यस्त्वम् (तविषीयसे) सैन्यमिवाचरसि (क्षितीः, प्रराजसि) मनुष्यान् शास्सि अतः (महान्) पूज्यस्त्वम् (ओजसा) पराक्रमेण (अपारः) पाररहितः ॥२६॥